नियमों को रौंदकर “काला सोना” बेचने का संगठित सिंडिकेट सक्रिय
Coal Mine Corruption | राजुरा | बल्लारपुर क्षेत्र की साखरी कोयला खदान में वर्षों से दबी रहकर फफूंद बन चुका भ्रष्टाचार अब सड़ांध मारने लगा है। खदान के भीतर चल रहे “ब्लैक कोल एक्सचेंज” के इस गोरखधंधे ने कोल इंडिया की पारदर्शिता, विश्वसनीयता और प्रशासनिक नियंत्रण की धज्जियाँ उड़ाकर रख दी हैं। कोयला उद्योग को “देश की ऊर्जा लाइफलाइन” कहा जाता है, लेकिन इसी ऊर्जा संसाधन की आड़ में कालाबाजारी और अवैध उगाही का नंगा नाच साखरी खदान में बदस्तूर जारी है। और सबसे गंभीर बात — यह खेल किसी छोटे-मोटे दलाल का नहीं, बल्कि खदान के भीतर बैठे “सरकारी कुर्सियों वाले दलालों” का है, जो वर्दी और अधिकार का इस्तेमाल “कमीशन वसूली मशीन” की तरह कर रहे हैं।
Coal Mine Corruption
प्राप्त जानकारी के अनुसार, माइनर ई-ऑक्शन के डीओ (डिलिवरी ऑर्डर) पर खरीदारों को केवल “छोटे आकार वाला कोयला” दिया जाना अनिवार्य है। यही कोयला ई-ऑक्शन श्रेणी में निर्धारित है और इसी के आधार पर खरीद-फरोख्त होती है। लेकिन साखरी खदान में नियमों की कब्र पहले ही खोद दी गई है—यहाँ बड़े आकार का मूल्यवान कोयला अवैध रूप से सप्लाई किया जा रहा है। यह “प्रिमियम कोयला” डीओ पर नहीं मिलता, यानी इसका रेट सरकार तय नहीं करती… और यहीं से शुरू होती है अस्सल काली कमाई।
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खदान में तैनात कुछ भ्रष्ट कर्मचारी, पर्यवेक्षक और अधिकारी अपने पद और अधिकारों का दुरुपयोग करते हुए ई-ऑक्शन वाले ग्राहकों को “प्रीमियम कोयला” उपलब्ध करा रहे हैं। इसकी कीमत तय होती है खदान के बाहर नहीं, बल्कि कोयला ढेर के पास, मशीनों और तराजू के बीच, उन बंद दरवाजों और खोदरी की गंध वाले उन अंधेरों में, जहाँ कानून का प्रकाश वर्षों से नहीं पहुँचा। विश्वसनीय सूत्रों ने बताया कि इस गैरकानूनी सौदे के लिए प्रति टन लगभग ५० रुपये अतिरिक्त वसूले जा रहे हैं। यह रकम सरकार, विभाग या किसी अधिकृत रजिस्टर में दर्ज नहीं होती—सीधे, नकद, “अंडर द टेबल”।
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परिणाम सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं—खदान से रोजाना ४० से अधिक ट्रक कोयला बाहर भेजा जा रहा है। औसतन प्रति ट्रक लगभग २८–३० टन कोयला माना जाए, तो प्रतिदिन हजारों टन कोयले की आवाजाही में लाखों रुपये की हेराफेरी हो रही है। एक साधारण अनुमान इस काले खेल की भयावहता उजागर कर देता है—यदि ६० ट्रक प्रतिदिन और हर ट्रक पर लगभग १,५०० रुपये (प्रति टन ५० रुपये के हिसाब से) की अवैध वसूली की जाए, तो रोजाना कम से कम ८४,००० रुपये से ९०,००० रुपये की काली कमाई हो रही है। महीने में यह राशि २५ से २७ लाख रुपये तक पहुँचती है। और यदि इस चेन में शामिल सभी पात्रों के हिस्से जोड़े जाएँ तो बरसों से यह घोटाला करोड़ों तक पहुँच चुका होना असंभव नहीं, बल्कि अत्यंत संभावित है।
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सबसे खतरनाक पक्ष यह है कि यह पूरा खेल खदान क्षेत्र के भीतर संचालित होता है। कोयला किस ट्रक में भरेगा, कितना भरेगा, किसे “प्रीमियम कोयला” दिया जाएगा, किससे वसूली कितनी होगी—यह सब खदान परिसर में ही तय होता है। कोयला लोडिंग बिंदु, डिपो क्षेत्र, वजनी पुल (वेट ब्रिज) और सुरक्षा चौकियों पर मिलीभगत के बिना यह संभव ही नहीं। इसका स्पष्ट अर्थ है—इस गोरखधंधे की जड़ें केवल निचले स्तर पर नहीं, बल्कि खदान प्रशासन की “संरक्षक” छत्रछाया में पनप रही हैं।
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साखरी खदान की यह स्थिति केवल एक धब्बा नहीं, बल्कि एक गंभीर चेतावनी है कि कोल इंडिया क्षेत्रों में ई-ऑक्शन सिस्टम अब “पारदर्शिता का मुखौटा” बनकर रह गया है। इसकी आड़ में वास्तविक पारदर्शिता की हत्या कर, भ्रष्टाचारियों ने इसे “प्राइवेट मार्केटिंग काउंटर” में बदल दिया है। अगर ई-ऑक्शन (E-auction) का उद्देश्य ही निष्पक्ष वितरण था, तो यह मॉडल ध्वस्त हो चुका है। प्रश्न यह है कि कोल इंडिया के उच्चाधिकारियों को यह अंधेरा दिखाई नहीं देता, या वे भी इस अंधेरे का हिस्सा बन चुके हैं?
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यदि तथ्यों की निष्पक्ष जाँच हो, तो यह घोटाला केवल कर्मचारियों और स्थानीय अधिकारियों तक सीमित नहीं रहेगा—इसके तार आपूर्ति श्रृंखला में बैठे उन बड़े अधिकारियों तक जुड़ सकते हैं, जिन्हें अपनी कुर्सी, सेफ्टी और प्रमोशन बचाने के लिए सबकुछ दिखाई देता है लेकिन कुछ भी नजर नहीं आता। खदान पर तैनात सतर्कता विभाग (विजिलेंस), सप्लाई कंट्रोल सेक्शन और एरिया मैनेजमेंट की भी भूमिका सवालों के घेरे में है। इतना बड़ा आर्थिक अपराध बिना “प्रशासनिक मौन स्वीकृति” के संभव ही नहीं।
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इस प्रकरण ने कोल इंडिया की साख पर गहरा दाग लगा दिया है। एक ओर सरकार देश में खनन क्षेत्र में सुधार, पारदर्शिता और डिजिटलीकरण की बात करती है, वहीं दूसरी ओर जमीनी स्तर पर भ्रष्टाचार की मशीनरी “डिजिटल सिस्टम” को धत्ता बताते हुए खुलेआम फल-फूल रही है। नियमों की अनदेखी, भ्रष्ट तंत्र का संरक्षण और खरीदारों को ब्लैकमेल कर मोटी रकम वसूलना—ये सभी तथ्य यह साबित करते हैं कि खदान क्षेत्र अब ऊर्जा संसाधन का नहीं, बल्कि “रैकेट संचालन” का केंद्र बन चुके हैं।
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इस भ्रष्टाचार की चपेट में केवल सरकारी राजस्व ही नहीं, बल्कि कोयला उपभोक्ता, उद्योग, ट्रांसपोर्टर और ईमानदार प्रतिस्पर्धी व्यापारी भी पीड़ित हैं। ई-ऑक्शन प्लेटफॉर्म पर बोली लगाकर कोयला खरीदने वाले व्यापारी, छोटे उद्योग और उपभोक्ता यदि छोटे आकार का कोयला खरीदने के बाद बड़े आकार वाले कोयले के लिए कैश में अतिरिक्त रकम चुकाने पर मजबूर हों, तो पारदर्शिता शब्द ही अर्थहीन हो जाता है। यह बाजार प्रणाली को बिगाड़ने वाला षड्यंत्र है, जो अंततः जनता की जेब पर बोझ डालता है, क्योंकि उद्योगों की लागत बढ़ने से इसी भ्रष्टाचार का भार वस्तुएँ खरीदने वाले नागरिकों के सिर पर आता है।
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यह मामला अब केवल खदान की सीमाओं तक सीमित नहीं रह गया है। यदि उच्च स्तरीय जाँच एजेंसियाँ—सीआईएल विजिलेंस, सीबीआई, ईडी या राज्य एसीबी—इस पर हाथ डालें, तो यह घोटाला एक बहु-राज्यीय “कोयला सिंडिकेट” के रूप में सामने आ सकता है, जिसकी नींव वर्षों से पुख्ता की गई है। इस जाँच में यह भी सामने आ सकता है कि किन-किन स्तरों पर “कट” या “शेयर” तय किया गया है, किस विभाग में किस पद पर बैठे लोग प्रतिशत लेते हैं, और कौन इस पूरे षड्यंत्र का संरक्षक है।
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आम नागरिकों का यह प्रश्न आज सच बनकर सामने खड़ा है—क्या खदानें देश के विकास की धुरी हैं या भ्रष्टाचारियों के “कैश काउंटर”? अगर कोयला खदानों को खुली मंडी समझकर अधिकार और वर्दी वाले लोग ही माल उठाने में लग जाएँ, तो खनन क्षेत्र की विश्वसनीयता और सरकारी व्यवस्था दोनों ही गहरी गर्त में धँसती जाएँगी।
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साखरी खदान में भ्रष्टाचार का यह खुलासा केवल एक रिपोर्ट नहीं, बल्कि एक चेतावनी है। यह वह दर्पण है जिसमें कोल इंडिया को अपना चेहरा देखना होगा। इस गोरखधंधे पर तुरंत रोक, जिम्मेदारों की पहचान, सस्पेंशन, प्राथमिकी दर्ज कर गिरफ्तारी और नियमित सतर्कता निरीक्षण अनिवार्य है। यदि इस प्रकरण को भी “सामान्य अनियमितता” बताकर दबा दिया गया, तो यह गिरोह और अधिक निर्भीक हो जाएगा।
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सवाल उठता है—क्या सरकार, कोल इंडिया और खदान प्रबंधन इस पर कठोर कार्रवाई करेंगे? या यह मामला भी समय के गुजरने के साथ “धूल खाता फाइल” बन जाएगा? देश को इसका जवाब चाहिए—और जल्द चाहिए।
What is the core issue behind the Sakhari coal mine corruption case?
Who is allegedly involved in this coal corruption racket?
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