समयसीमा खत्म, फिर भी जारी अवैध रेत खनन | ब्रिज के पास नियमों की धज्जियां | राजस्व विभाग की चुप्पी पर उठे गंभीर सवाल
Illegal Sand Mining | राजुरा | से लगभग ३० किलोमीटर दूर वर्धा नदी के आर्वी घाट पर अवैध रेत उत्खनन का संगठित और सुनियोजित खेल उजागर हुआ है। यह घटनाक्रम न केवल पर्यावरण, कानून और शासन व्यवस्था का मखौल उड़ाता है, बल्कि शासन की खामोशी भी एक गहरे भ्रष्टाचार की बू दे रही है।
वर्धा नदी के धानोरा-आर्वी घाट का रेत खनन ठेका नागपुर की एक प्रभावशाली और नामचीन हस्ती को दिया गया था। इस खनन की वैध समयसीमा १० जून २०२५ को समाप्त हो चुकी थी। Illegal Sand Mining इसके बावजूद ३० जून तक बड़े पैमाने पर खनन जारी रहा, यह जानकारी स्थानीय नागरिकों और सूत्रों से प्राप्त हुई है।
खनन के दौरान न तो किसी भी प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था देखी गई, न ही पर्यावरणीय शर्तों का पालन हुआ, और न ही कानूनी मर्यादाओं का।
पुल के समीप उत्खनन: NGT और पर्यावरण नियमों का सीधा उल्लंघन
राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (NGT) के दिशा-निर्देशों के अनुसार, किसी भी पुल के ५०० मीटर के दायरे में रेत खनन पर पूर्ण प्रतिबंध होता है। Illegal Sand Mining लेकिन यहां धानोरा-आर्वी पुल से मात्र ५० मिटेर की दूरी पर भारी मशीनों से दिन-रात खनन चलता रहा।
यह न सिर्फ नियमों का उल्लंघन है, बल्कि भविष्य में पुल की संरचना को भी खतरे में डालने वाला कृत्य है। सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन को इसकी भनक नहीं थी या जानबूझकर आंख मूंद ली गई?
हजारों ब्रास रेत का अवैध भंडारण, लाखों का सरकारी नुकसान
आर्वी और कवीटपेठ क्षेत्र की कृषि भूमि पर हजारों ब्रास रेत का स्टॉक अवैध रूप से जमा किया गया है। Illegal Sand Mining यह रेत बाद में काला बाज़ार में बेची जाती है, जिससे लाखों रुपए का राजस्व सीधे सरकारी तिजोरी में जाने के बजाय माफिया की जेब में पहुंचता है।
- न GST का भुगतान
- न रॉयल्टी
- न पर्यावरण कर
- न परिवहन की अनुमति
यानी पूरा रेत माफिया नेटवर्क सक्रिय था, लेकिन प्रशासन नदारद।
नीलामी में देरी: सरकार की नीति ही दोषपूर्ण
सूत्रों के मुताबिक यह रेत घाट गोंडपीपरी तहसील के आर्वी और राजुरा तहसील के धानोरा के सीमा क्षेत्र में आता है। Illegal Sand Mining सामान्यतः रेत घाटों की नीलामी मार्च-अप्रैल में की जाती है ताकि ठेकेदार वैध अवधि में ही खनन पूरा कर सकें। लेकिन इस घाट की नीलामी मई महीने के अंत में की गई, जिससे ठेकेदारों को सीमित समय मिला और फिर वही बहाना बनाकर गैरकानूनी खनन शुरू किया गया।
यह देरी और असंगठित नीति खुद सरकार की लापरवाही को दर्शाती है।
नागरिकों की शिकायत पर भी प्रशासन मौन — क्यों?
स्थानीय लोगों ने इस अवैध खनन के खिलाफ राजस्व प्रशासन से लिखित शिकायत की थी। Illegal Sand Mining लेकिन हैरानी की बात यह है कि ना तो कोई निरीक्षण हुआ, ना कोई FIR दर्ज हुई, और ना ही किसी अधिकारी ने बयान देना जरूरी समझा।
यह चुप्पी अपने आप में गंभीर सवाल खड़े करती है:
- क्या अधिकारियों को ऊपर से दबाव था?
- क्या इस अवैध खनन से उन्हें ‘हिस्सा’ मिल रहा था?
- क्या माफियाओं का डर प्रशासन पर हावी है?
स्थानीय लोगों का आरोप: "अनुमति से अधिक रेत उठाई गई"
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि ठेके में निश्चित ब्रास की सीमा तय थी, लेकिन उस सीमा से कहीं अधिक रेत निकाली गई। Illegal Sand Mining जब इस बात की शिकायत राजस्व विभाग से की गई, तो उल्टा शिकायतकर्ताओं को धमकाया गया और उनके नाम उजागर कर डराने की कोशिश की गई।
यह लोकतंत्र में असहमति को कुचलने का खुला प्रयास नहीं तो और क्या है?
जिम्मेदार कौन?
पक्ष | भूमिका |
---|---|
ठेकेदार | वैध सीमा से अधिक खनन, पर्यावरण और नियमों का उल्लंघन |
राजस्व विभाग | समय पर जांच न करना, शिकायतों की अनदेखी |
पुलिस प्रशासन | अवैध गतिविधियों पर मूकदर्शक बनकर बैठना |
जिला प्रशासन | घाट की नीलामी में देरी, समन्वय की विफलता |
जनता की मांग:
- रेत तस्करी की उच्च स्तरीय जांच SIT द्वारा कराई जाए।
- अवैध रेत का जप्ती अभियान चलाकर स्टॉक नष्ट किया जाए या सरकारी नियंत्रण में लाया जाए।
- संबंधित राजस्व व पुलिस अधिकारियों को तत्काल निलंबित कर विभागीय जांच हो।
- जनहित याचिका के माध्यम से इस घाट पर आगे कोई खनन न हो इसका आदेश दिया जाए।
- रेत घाटों की नीलामी में पारदर्शिता लाई जाए व GPS आधारित निगरानी प्रणाली लागू की जाए।
रेत नहीं, लोकतंत्र खनन में है।
जब ठेकेदारों को कानून तोड़ने की खुली छूट मिले, जब प्रशासन जानबूझकर आंख मूंद ले, और जब शिकायतकर्ता ही प्रताड़ित हों — तब यह स्पष्ट हो जाता है कि प्रशासन माफिया के साथ खड़ा है, जनता के साथ नहीं।
अब सवाल जनता का है — क्या आप चुप रहेंगे? या इस लूट, इस लाचारी, और इस दमन के खिलाफ आवाज उठाएंगे?
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