Guru Tegh Bahadur | राजुरा में गुरु तेग बहादुर साहिब नगर कीर्तन का आगमन

Mahawani
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The presence of various religious and social organizations in the welcome ceremony made the event a symbol of multi-faith harmony and unity.

मानवता, धार्मिक स्वतंत्रता और बलिदान की गाथा ने शहर को किया भावविभोर

Guru Tegh Bahadur | राजुरासिख इतिहास में अद्वितीय साहस, बलिदान और धार्मिक स्वतंत्रता के प्रतीक गुरु तेग बहादुर साहिब की ३५०वीं शहादत वर्षगांठ पर राजुरा नगर ने ऐतिहासिक क्षण का साक्षीदार बनकर अपनी पहचान दर्ज कराई। बुधवार, २४ सितम्बर २०२५ को दोपहर १२ बजे नगर में भव्य नगर कीर्तन का आगमन हुआ। यह नगर कीर्तन असम के दुबरी स्थित ऐतिहासिक गुरुद्वारे से प्रारंभ होकर देश के विभिन्न राज्यों की यात्रा कर रहा है और २४ नवम्बर २०२५ को दिल्ली में अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँचेगा। इस यात्रा के साथ गुरु तेग बहादुर साहिब के बलिदान और संदेशों को जन-जन तक पहुँचाने का उद्देश्य है।

Guru Tegh Bahadur

गुरु तेग बहादुर साहिब ने १७वीं शताब्दी में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवीय गरिमा की रक्षा हेतु अपना बलिदान दिया। जब तत्कालीन शासन द्वारा जबरन धर्म परिवर्तन और अत्याचार का दौर चल रहा था, तब उन्होंने निर्भीकता से अन्याय के विरुद्ध आवाज़ बुलंद की। कश्मीरी पंडितों और अन्य उत्पीड़ित समुदायों के लिए उन्होंने अपनी जान न्यौछावर की। इसी कारण उन्हें "हिंद की चादर" कहा जाता है। उनका बलिदान न केवल सिख समाज बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

Guru Tegh Bahadur

नगर कीर्तन के स्वागत के लिए राजुरा शहर को विशेष रूप से सजाया गया। गुरुद्वारे के आसपास सड़कों को रंग-बिरंगी झालरों, फूलों और धार्मिक प्रतीकों से सजाया गया। स्वागत समारोह में विविध धार्मिक और सामाजिक संगठनों की उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को बहुधर्मी सौहार्द और एकता का प्रतीक बना दिया। नगरवासियों ने अपने-अपने घरों और दुकानों से नगर कीर्तन का अभिवादन किया। गुरबानी के मधुर कीर्तन, ढोल-नगाड़ों की गूंज और सत्संग की ध्वनियों ने पूरे वातावरण को आध्यात्मिक ऊर्जा से ओतप्रोत कर दिया।

Guru Tegh Bahadur

इस अवसर पर नगर के अनेक प्रतिष्ठित व्यक्तित्व उपस्थित थे। माजी नगराध्यक्ष अरुण धोटे, माजी उपनगराध्यक्ष सुनील देशपांडे, माजी नगरसेवक राधेश्याम अडानिया और हरजीतसिंह संधू ने नगर कीर्तन का औपचारिक स्वागत किया। उनकी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर भी विशेष महत्व प्रदान किया।

Guru Tegh Bahadur

कार्यक्रम की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह रही कि केवल सिख समाज ही नहीं, बल्कि मुस्लिम समाज ने भी नगर कीर्तन का खुले हृदय से स्वागत कर भाईचारे और सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल पेश की। मुस्लिम समाज के अनेक प्रतिष्ठित नागरिक—बाबा बेग, राजिक कुरेशी, हाजी सय्यद सखावत अली, मतीन कुरेशी, जमील खान, साजिद बियाबानी, सय्यद आसिफ, शाहीद अहमद, निजाम बुखारी, सय्यद साबीर अली, निहाल अहमद, शाहनवाज कुरेशी, नफे शेख, सोहेल शेख, झाकीर सिद्दीकी, मुन्नू चाऊस, अरबाज खान, नीजाम शेख, आसिफ खान, रईम शेख और अब्दुल तलजीम कुरेशी सहित कई लोगों ने इस नगर कीर्तन का स्वागत किया। उनकी उपस्थिति ने इस कार्यक्रम को बहुधर्मी एकता और सामाजिक सद्भाव का प्रतीक बना दिया।

Guru Tegh Bahadur

सिख धर्मगुरुओं को इस अवसर पर विशेष सम्मानित किया गया। यह सम्मान केवल उनके आध्यात्मिक नेतृत्व का नहीं, बल्कि उस परंपरा का भी था जिसमें त्याग, सेवा और न्याय के लिए संघर्ष को सर्वोच्च स्थान दिया गया है।

Guru Tegh Bahadur

राजुरा नगर का यह दृश्य मानो भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और उसकी सांस्कृतिक विविधता का जीवंत उदाहरण था। नगर कीर्तन के साथ चल रहे रागी जथों ने शबद-कीर्तन के माध्यम से गुरु साहिब के विचारों को प्रस्तुत किया। ‘सरबत दा भला’ का संदेश हर चेहरे पर स्पष्ट दिखाई दे रहा था। नगरवासियों ने इस ऐतिहासिक अवसर को केवल धार्मिक आयोजन न मानकर, इसे मानवता, समानता और स्वतंत्रता के संदेश के रूप में ग्रहण किया।

Guru Tegh Bahadur

गुरु तेग बहादुर साहिब की शहादत का स्मरण करना केवल इतिहास को दोहराना नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक दिशा तय करना है। आज जब समाज विभाजन और असहिष्णुता की चुनौतियों से जूझ रहा है, ऐसे समय में उनका बलिदान हमें यह सिखाता है कि सत्य, न्याय और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए संघर्ष ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है।

Guru Tegh Bahadur

इस नगर कीर्तन का आगमन राजुरा नगर के लिए केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि एक ऐसा अवसर बन गया जिसने शहर के हर नागरिक को अपने भीतर झांकने और मानवता के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझने का मौका दिया।

Guru Tegh Bahadur

आगामी महीनों में यह नगर कीर्तन भारत के विभिन्न हिस्सों से होते हुए दिल्ली पहुँचेगा, जहाँ २४ नवम्बर को इसका समापन होगा। निस्संदेह, यह यात्रा गुरु तेग बहादुर साहिब की स्मृति को अमर करते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए भी मार्गदर्शन का कार्य करेगी।


What is the significance of Guru Tegh Bahadur’s 350th martyrdom?
It marks the supreme sacrifice of Guru Tegh Bahadur for defending religious freedom and human dignity, inspiring generations worldwide.
From where did this Nagar Kirtan originate?
The Nagar Kirtan started from the historic Gurudwara at Dubri in Assam and is traveling across India before concluding in Delhi.
When will the Nagar Kirtan conclude?
The journey will end on 24 November 2025 in Delhi, commemorating the martyrdom of Guru Tegh Bahadur Sahib.
How did Rajura city welcome the Nagar Kirtan?
Rajura decorated the city, hosted interfaith programs, and welcomed the procession with active participation from all communities.


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