WCL Outsourcing Crisis | बुद्धा कंपनी में मजदूरों का शोषण और वेकोली का आउटसोर्सिंग मॉडल

Mahawani
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Photograph showing a working Very Big machine from WCL and the WCL logo.

वेकोलि गोवरी–पोवनी खदान का गहराया संकट

WCL Outsourcing Crisis | राजुरा | चंद्रपुर जिले के राजुरा तहसील के बल्हारपुर क्षेत्र की कोयला खदानें एक बार फिर विवादों में हैं। वेकोली (वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड) ने अधिकतर खदानों का काम आउटसोर्सिंग के माध्यम से निजी कंपनियों को सौंप रखा है। इसी कड़ी में गोवरी–पोवनी खदान का संचालन पिछले वर्ष से आंध्र प्रदेश की बुद्धा कंपनी को दिया गया था। ओवर लोड हटाने और कोयला उत्पादन का ठेका इस कंपनी के पास है। लेकिन बीते दो महीनों से मजदूरों को वेतन न मिलने के कारण उत्पादन पर सीधा असर पड़ने लगा है। मजदूरों का पलायन शुरू हो चुका है और खदान का भविष्य अँधेरे में लटका हुआ है।


मजदूरों की दयनीय स्थिति

कंपनी में लगभग ८१६ मजदूर कार्यरत हैं। इनमें तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़ से आए हुए श्रमिकों की संख्या अधिक है। WCL Outsourcing Crisis स्थानीय स्तर पर भी कुछ बेरोजगार युवाओं को काम मिला है, लेकिन अधिकांश श्रमिक बाहर के राज्यों से बुलाए गए हैं। इन्हें खदान क्षेत्र में अस्थायी कैंप बनाकर रखा गया है, जहां खान–पान और रहने की घटिया सुविधा शुल्क लेकर उपलब्ध कराई जाती है।


मजदूरों का कहना है कि कंपनी ने नियमित वेतन देने का आश्वासन देकर उन्हें काम पर रखा था, लेकिन अब दो–दो महीने का वेतन बकाया है। WCL Outsourcing Crisis इससे उनके जीवन पर गहरा संकट मंडरा रहा है। कई मजदूर गांव वापस लौटने लगे हैं, जिससे उत्पादन कार्य बाधित हो गया है।


कंपनी की सफाई और प्रबंधन की चुप्पी

जब इस संबंध में Shri Buddhha SVEC Joint Ventures कंपनी के सीएमडी प्रसाद से बात की गई तो उन्होंने स्वीकार किया कि मजदूरों का दो माह का वेतन बकाया है। उन्होंने आश्वासन दिया कि जल्द से जल्द भुगतान की व्यवस्था की जाएगी। लेकिन मजदूरों के धैर्य का बांध टूट चुका है।


इस गंभीर स्थिति पर कंपनी के स्थानीय साइडिंग प्रबंधक नागराज पप्पुरि से संपर्क करने की कोशिश की गई, लेकिन उनका मोबाइल “नॉट रीचेबल” होने से कोई प्रतिक्रिया प्राप्त नहीं हो सकी। यह चुप्पी मजदूरों की शंकाओं को और गहरा कर रही है।


वेकोली का आउटसोर्सिंग मॉडल सवालों के घेरे में

बल्हारपुर क्षेत्र में कुल छह खदानें सक्रिय हैं। WCL Outsourcing Crisis इनमें से अधिकांश का संचालन आउटसोर्सिंग कंपनियों के हाथ में है। वेकोली सीधे मजदूरों को रोजगार देने से बच रही है और ठेका कंपनियों के माध्यम से काम करवा रही है।


विशेषज्ञों का कहना है कि यह नीति मजदूरों के अधिकारों पर कुठाराघात है। Buddha Company सरकारी उपक्रम होने के बावजूद वेकोली अपने कंधों से जिम्मेदारी उतारकर निजी कंपनियों को सौंप रही है। इन कंपनियों का मुख्य लक्ष्य केवल मुनाफा कमाना होता है, मजदूरों के कल्याण या उनके भविष्य की सुरक्षा से उनका कोई सरोकार नहीं रहता।


उत्पादन पर सीधा असर

बीते माह से खर्च और उत्पादन के अनुपात में गिरावट आई है। WCL Outsourcing Crisis परिणामस्वरूप वेकोली द्वारा आउटसोर्सिंग कंपनी को भुगतान नहीं किया गया। इसका खामियाजा मजदूरों को भुगतना पड़ा। मजदूरी का पैसा रोकने से उनकी आजीविका संकट में आ गई है।


कोयला उत्पादन प्रभावित होने से ऊर्जा आपूर्ति और औद्योगिक क्षेत्र पर भी दूरगामी असर पड़ सकता है। यह समस्या केवल स्थानीय मजदूरों की नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर कोयला आपूर्ति की निरंतरता से भी जुड़ी है।


मजदूर संगठनों का आक्रोश

इस शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हुए श्रमिक नेता आर. आर. यादव तथा एचएमएस के पूर्व श्रमिक नेता राजेंद्र (राजू) डोहे ने प्रशासन और राज्य सरकार से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। WCL Outsourcing Crisis उनका कहना है कि जब मजदूरों से बिना वेतन काम करवाया जाता है या उन्हें बेइज्जत कर कैम्प से बाहर निकाला जाता है, तो यह श्रम कानूनों का खुला उल्लंघन है।


नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि यदि मजदूरों को न्याय नहीं मिला तो आंदोलन का रास्ता अपनाना पड़ेगा। उन्होंने वेकोली प्रशासन और स्थानीय राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि मजदूरों की अनदेखी अब और बर्दाश्त नहीं की जाएगी।


स्थानीय युवाओं के साथ अन्याय

राजुरा तहसील के अनेक बेरोजगार युवा वर्षों से रोजगार की मांग कर रहे हैं। WCL Outsourcing Crisis लेकिन खदानों में उन्हें प्राथमिकता देने के बजाय बाहरी राज्यों की कंपनियां अपने साथ मजदूर लाकर भर्ती कर रही हैं। इससे स्थानीय युवाओं में असंतोष बढ़ रहा है।


मजदूर संगठनों का कहना है कि यदि खदान क्षेत्र की ही बेरोजगार पीढ़ी को रोजगार दिया जाता, तो मजदूरों की समस्या भी कम होती और स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बल मिलता।


प्रशासन की भूमिका और आगे का रास्ता

वेकोली और आउटसोर्सिंग कंपनी के बीच आर्थिक खींचतान का खामियाजा मजदूरों को भुगतना पड़ रहा है। WCL Outsourcing Crisis यह स्पष्ट रूप से प्रशासनिक लापरवाही है। यदि समय रहते जिला प्रशासन और राज्य सरकार ने हस्तक्षेप नहीं किया, तो खदान क्षेत्र में बड़ा मजदूर आंदोलन खड़ा हो सकता है।


कानूनी दृष्टि से भी देखा जाए तो मजदूरों को वेतन रोकना “पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट” और अन्य श्रम कानूनों का उल्लंघन है। श्रम विभाग को इस पर तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए।


गोवरी–पोवनी खदान का संकट केवल एक ठेका कंपनी या मजदूरों की समस्या नहीं है। WCL Outsourcing Crisis यह एक बड़े औद्योगिक मॉडल की विफलता का उदाहरण है, जिसमें सरकारी उपक्रम अपनी जिम्मेदारियों से किनारा करके निजी कंपनियों पर निर्भर हो गए हैं।


आज मजदूरों को न्याय दिलाने और खदान क्षेत्र को स्थिरता देने के लिए राज्य सरकार, वेकोली प्रशासन और श्रम विभाग को मिलकर निर्णायक कदम उठाना होगा। WCL Outsourcing Crisis यदि ऐसा नहीं हुआ तो मजदूरों के पलायन से उत्पादन और आपूर्ति व्यवस्था पूरी तरह चरमरा जाएगी, जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा।


Why are workers protesting at the Gauri-Powani coal mine?
Workers are protesting because they have not been paid for two months, leading to severe financial hardship.
Which company holds the contract for the Gauri-Powani coal mine?
The contract was given to Buddha Company, an outsourcing firm operating from outside Maharashtra.
How has the wage delay affected coal production?
Many workers have left the site, causing a direct fall in coal production and disrupting WCL’s output targets.
What action have labour leaders demanded?
Labour leaders have urged WCL management and the state government to intervene immediately and ensure timely payment to workers.


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